Why Baloch and Pashto against pakistan army.
टू नेशन थ्यौरी के जनक मोहम्मद अली जिन्ना की देन पाकिस्तान यूँ तो अपनी कौम की रखवाली और उनके इक़बाल को बुलंद रखने के लिए बना था पर पाकिस्तान गठन के बाद से रास्ता भटक गया था. ऐसा नहीं राजनैतिक नेतृत्व के बदलने से पाकिस्तान की हालत खस्ता हुई. शुरू से ही पाकिस्तान की फ़ौज और वहा के हुक्मरान भेदभाव और श्रेष्ठ्ता के आधार पर अपनी ही आवाम को अलग थलग करते गए. उसी का नतीजा था बांग्लादेश का उदय. बांग्लादेश के लोगों और वहा के सियासी बाशिंदो को पाकिस्तान के शासन ने ना कभी स्वीकार किया ना ही उन्हें इज्जत और बराबरी का अधिकार दिया.
बटवारे के समय भारत से पहुंचे लोग जिन्हे पाकिस्तान आज भी मुहाजिर बुलाता हैं वो 7% लोगों को वो बराबरी नहीं मिली जो बाकि लोगों को मिली थीं. पाकिस्तान बोलने को उर्दू बोलता हैं परन्तु भाषा के आधार पर बात की जाए तो सबसे ज्यादा वहा 40% से ज्यादा पंजाबी बोलने वाले हैं, दूसरे स्थान पर पश्तू 15%, तीसरे पर सिंधी 14% और बाकि में सरैकी, मोहाजिरों द्वारा बोली जानी वाली और फिर बलोच भाषा हैं.
पाकिस्तान हमेशा से वो बनने की कोशिश करता रहा जो असल में न था और न बनने के कही भी प्रयास थें. हाँ ! एक प्रेजन्टेशन के तौर पर जरूर उसने ये नाकामयाब कोशिश की थीं.
पाकिस्तानी फ़ौज और वहा के हुक्मरानों ने ख़ैबर के पश्तूनों और बलूचिस्तान के बलोचों पर सिर्फ उनका इतिहास ही नहीं मूल पहचान को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.फ़ौज के जुल्मो से सिर्फ इन दो सूबों के लाखों नौजवान और राजनैतिक लोगों मौत के घाट उतार दिया गया. बलोचों के कई युवा लापता हैं, बेटियों और महिलाओं पर जुल्म की मानों इंतेहा हैं. फ़ौज इन लोगो को अपने जूतों तले रोजाना रोंदती हैं. ऊपर से सेना की हवाई कार्रवाई में कई लोगों की हत्याएँ होती रहती हैं. ये सब बटवारें के समय से अनवरत चलता आ रहा हैं. न पाकिस्तान मानवाधिकार संगठनों की मानता हैं न अंतराष्ट्रीय निर्णयों पर ध्यान देता हैं.
जिन्ना की बातें पाकिस्तान की सियासी जमातें और उनके हुक्मरान सिर्फ अपने भाषण और जलसों में पहुंचने वाली भीड़ को सुनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं. वैसे भी जिन्ना का बोया बीज कई लोगों और कई कौम को बर्बादी की कगार पर ले आया हैं.
क्यों विरोध है बलूचिस्तान, POK, गिलगित और खैबर-पख़्तूनख़्वा में
पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे और अपने आवाम की बेहतरी के लिए शुरू से असफल रहा क्योंकि उसने अपने लोगों से ज्यादा बाकि मुद्दों और कामों को प्राथमिकता दी जिसमें सबसे पहला काम भारत के खिलाफ आतंक, कुछ मदद के खातिर सोवियत युद्ध में अमरीका का पिट्ठू बनकर लड़ाई में साथ और अमरिकी सेना को अपनी जमीं पर पुरा एक्सेस देकर. हाल ही में पाकिस्तान चीन की गौद में इस तरह जा बैठा की वो बलोचों की जमीनों और अस्मत को उन्हें ऐसे सौंप रहा हैं जैसे वो सिर्फ एक मौके के लिए पाले गए बकरें हो. वन रोड वन बेल्ट नाम की चीन की बहुउद्देशीय सड़क योजना के लिए पाकिस्तान ने अपने लोगों की जरूरतों और जमीनों को दांव पर लगा दिया.
खैबर पख़्तूनख़्वा में हाल में पाकिस्तानी रेंजर्स के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन व विरोध हुआ. रेंजर्स पर ख़ैबर के पश्तों लोगों ने जमीनों को हड़पने से लेकर उनकी ज़्यादती के आरोप लगाए. गिलगित-बाल्टिस्तान को पाक फ़ौज ने ऐशगाह बना रखा हैं. POK पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को बजट के नाम पर वहां की सेना के खास नुमाइंदो और इस्लामाबाद के प्यादों की जेब गर्म के सिवाय विकास के नाम पर कुछ नहीं हैं. जुल्म और सितम तो बलोक, पश्तो और कश्मीरियों पर आज भी पाकिस्तान में वही हो रहा हैं.

क्या बदलेंगी पाकिस्तान की तस्वीर ?
ये बात बहुत मुश्किल लगती हैं. पाकिस्तान में कई हुक्मरानों ने भारत से शांति की पेशकश की बात की या मुल्क को बेहतरी की तरफ ले जानें वाले मुद्दों को आगे रखा तो वह का फौजी इदारा हमेशा इस कोशिश को नाकाम कर सत्ता को कब्जाने में कामयाब रहा. फ़ौज में हो रहे बेशुमार भ्रष्टाचार और भारत के साथ दुश्मनी पर चलती दुकान में फ़िलहाल मीठे पकवान मुश्किल दिखाई देते हैं. फौजी सत्ता चली भी गई और आम चुनाव भी हुए तो न तो मजबूत लीडरशिप पाकिस्तान को मिल पाई ना उसे फैसले लेने की आजादी.
