कहते हैं पुराने जमाने में राजा अपने राज्य की प्रजा और उनके हाल जानने के लिए सामान्य व्यक्ति के भेष में अपने राज्य के सभी जगहों पर चक्कर लगाते थे और यह जानते थे कि उनके साथ उनके सिपाही और उनका जो राजतंत्र है वह किस तरीके से उनके साथ सलूक करता है, पेश आता है हालांकि आज के जमाने में ऐसा होना तो छोड़िए लेकिन ऐसा सुनने में भी कभी नहीं आता है. आज के नए नवेले नेता बिना किसी पद के भी थाने में और बाकी जगहों पर इस तरीके से भौकाल दिखाते हैं जैसे वह इस देश का और प्रदेश का मालिक हो.
खैर! मुख्यधारा की राजनीति की बात छोड़ भी दें तो भी आप अगर नीचे छात्र राजनीति भी देखेंगे तो आज के नए नवेले लड़के विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के चुनाव लड़ते ही फॉर्च्यूनर कार लेकर ऐसा भौकाल मचाते हैं कि मानों बड़े वाले तो इसे अपना स्तर ही न समझें. ऐसे जमाने में किसी प्रधानमंत्री की यह बात की जाए कि वह सामान्य से गंदे मेले कुचले कपड़े पहन कर एक गरीब व्यक्ति के रूप में किसी पुलिस थाने या सरकारी कार्यालय में जाकर वहां के हालातों का जायजा लेगा तो यह बिल्कुल दिवास्वप्न सा लगता है परंतु हमारे देश में ऐसे भी वाक़ये हुए हैं जिनका जिक्र करना और आने वाली पीढ़ियों को बताना जरूरी है. राजनीति में जैसे आज भौकाली नेता घूमते हैं. जिस तरीके से बड़ा पुलिस दल-बल के साथ घूमते हैं. जिस तरह बड़ी गाड़ियों का काफिला. क्षैत्र में जाने से पहले बड़े-बड़े होर्डिंग्स और विज्ञापनों से सटा हुआ बाजार-सड़कें. लेकिन कई राजनेता ऎसे भी हुए हैं जिन्होंने बिल्कुल सामान्य तरीके से अपनी राजनीति की. कई योजनाओं जिनमें खासतौर से किसानों और गरीबों के हित की बातें हो, उनको लाया.
आज उसी व्यक्ति की बात हो रही है उस व्यक्ति का नाम था चौधरी चरण सिंह !
बात 1979 की है जब उत्तरप्रदेश, इटावा जिले के एक ऊसराहार पुलिस थाने में परेशान दिखने वाला व्यक्ति गंदे से कपड़े, कंधे पर गमछा रखे हुए थाने में एंटर होता है और अपने बैल चोरी होने की तहरीर लिखवाना चाहता है परंतु पुलिस कांस्टेबल अनसुनी करके उसे बैठा देता हैं. कह दिया जाता है कि इंतजार करिए. वह फिर से उस सिपाही से गुज़ारिश करता हैं कि “साहब! मेरे बैल चोरी हो गए है, कृपया रपट लिख दीजिए.” सिपाही इस बार उसे दारोग़ा के पास ले जाता हैं. अब दारोग़ा साहब ठहरें बड़े वाले तो वो किसान से दो-चार इधर उधर के सवाल पूछकर झिड़क कर रवाना कर देते हैं. अब जब निराश और लाचार किसान जाने लगता है इस बीच में एक सिपाही उसे अपने पास बुलाता है और कहता हैं – “बाबा, कुछ खर्चे-पानी का आपके धोती के पॉकेट में जुगाड़ हो तो आपकी रपट लिखी जा सकती हैं.” तो नेगोशिएशन के बाद बात तय होती है 35 रुपये में. बाबा की रिपोर्ट लिखी जा चुकी थी और अब बारी थी रिपोर्ट के नीचें सिग्नेचर करने की. दारोगा पूछता हैं कि “बाबा हस्ताक्षर करेगा या अंगूठा लगाएगा?” तो बाबा कलम लेकर लिखते हैं – चौधरी चरण सिंह और जेब से मोहर निकाल ठप्पा लगाते हैं जिस पर लिखा होता हैं- प्रधानमंत्री, भारत सरकार
बस फिर तो पुरे थानें में सन्नाटा पसर जाता हैं.उसके बाद पूरे पुलिस थाने को सस्पेंड कर दिया जाता हैं. ऐसे थे चौधरी चरण सिंह आज के जमाने में इस बात की कल्पना करना भी नागवार है क्योंकि आज तो छोटे-मोटे छुटभैये नेता भी जेड प्लस और Y कैटेगरी की सुरक्षा की मांग करके जनता में अलग छवि गढ़ते हैं. अपना स्तर साथ में बॉडीगार्ड, पुलिस कमांडो और एसपीजी गार्ड के जरिये दिखाना चाहते हैं. वो आम लोगों में ये जाताना चाहते हैं कि वे कितने ताकतवर और बाहुबली हैं. गाड़ियों का जितना बड़ा काफिला होगा उतनी ही बड़ी नेतागिरी.
किसान नेता चौधरी चरण सिंह को हमें याद रखना चाहिए राजनीति में आने वाले नए लोगों को चौधरी चरण सिंह से बहुत कुछ सीखना चाहिए यह किस्सा तब का है जब चौधरी चरण सिंह नए-नए प्रधानमंत्री बने थे. अपने प्रदेश और देश के हाल-चाल जानने के लिए इस तरह की एक्टिविटीज किया करते थे. किसान पुत्र चौधरी चरण सिंह इसीलिए राजनीति में काफी लोकप्रिय हुए और लोग उन्हें धरती पुत्र-किसान पुत्र के रूप में जानने लगे.
